*गुरूर जो तोड़े बानगी अजब गजब शय है*
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गुरूर जो तोड़े बानगी , अजब गजब शय है।
ये आईना झूठी खुशी , अजब गजब शय है।
सब इसको निहारते हैं , लेकिन ये घूरता है,
लाजवाब है आशिकी ,अजब गजब शय है।
ये सब सत्य जानता है, ख़फ़ा सा टंगा हुआ,
लेकिन इसकी खामुशी,अजब गजब शय है।
घंटों खड़ो बेशक इसके सामने ,ये न सगा है,
चाहे उतारो तुम आरती,अजब गजब शय है।
आईने में हुस्न-ए-ताब बार बार आते जाते हैं,
ये बेईमानी कमाल की, अजब गजब शय है।
मुखौटों को ये बैरी ,सब तार-तार कर देता है
इसको पसंद है सादगी ,अजब गजब शय है।
आईने से दूर हटते ही ,ये पहचान भुलाता है,
ये अंदाज़-ए-बे-चेहरगी ,अजब गजब शय है।
जाति धर्म रंग रूप की परवाह नहीं है इसको,
बहुत खुद्दार है वाकई,अजब गजब शय है।
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सुधीर कुमार
सरहिंद फतेहगढ़ साहिब पंजाब