गुरु
ज्ञान पुंज गुरु अज्ञान विनाशे,
सद्गुणों का सबमें विकास करे।
तम नाशक स्व शरों से सर्वथा,
ज्ञान दीप से हृदय में उजास करे ।
वचन अमृत है श्री गुरु का,
नित दुर्गुण से हमे दूर रखें।
सदमार्ग चिंतन जाग्रत हो,
कदापि कुमार्गगामी न बनें।
सद्ज्ञान अमृत बन लहू में,
सदाचार नित बनकर बहे।
इहलोक और परलोक दोनो,
गुरू कृपा से ही उन्नत रहें।
करो नमन उन महाप्रभु को,
जीव जन्म सार्थक किया।
गुरू शरण को पाकर जीव ने,
ज्ञान पुंज को विस्तृत किया।
स्वरचित एवं मौलिक
कंचन वर्मा
शाहजहांपुर
उत्तर प्रदेश