“गुरु”
गुरु जी आन पधारे री,
आज मेरे आंगना,
असुवन पग धोये री,
आज मेरे आंगना,
भिलनी जैसे बाट निहारती,
पलकन अपने आँगन बुहारती,
चख – चख बेर भिलनी जैसे,
अपनी कुटिया में आन सजाती,
खाकर बेर दासी के झूठे,
गुरुवर ने पूरी कर दी मनोकामना,
गुरु जी आन पधारे री,
आज मेरे आंगना,
चन्दन की चौकी पे बिठाऊँ,
रगड़ – रगड़ उनको नहलाऊँ,
रेशम के वस्र पहनाऊँ,
भाल उनके तिलक सजाऊँ,
मख़मल का बिस्तर लगाऊँ,
आठों याम उनके गुण गाऊँ,
मैं तो गुरुजी पे बलिहारी जाऊँ,
आज मेरे आंगना,
गुरु जी आन पधारे री,
आज मेरे आंगना,
जन्म -जन्म के पाप कट गए,
सोये हुए मेरे भाग जग गये,
गला मेरा रुँध – रुँध जाये,
नैना मेरे नीर बहायें,
रोम – रोम मेरा हर्षाये,
गुरुजी के चरण पखारे री,
आज मेरे आंगना,
गुरु जी आन पधारे री,
आज मेरे आंगना,
अंतर्मन के पट सारे खुल गए,
दुविधा के सब जाले हट गये,
ऐसे चरण पड़े मेरे गुरुवर,
मुक्ति के सब द्वारे खुल गये,
मोक्ष की नहीं अब “शकुन” को कामना,
गुरु जी आन पधारे री,
आज मेरे आंगना,
असुवन पग धोये री,
आज मेरे आंगना।।