गुरु शिष्य परंपरा
गुरु शिष्य परम्परा
गुरु साक्षात ब्रह्म हैं,
संस्कृति के सिरमौर,
गुरु ही गोविंद,
गुरु ही सार्वभौमिक,
गुरु ज्ञान का आलोक
दे कर अज्ञान का तम मिटाते हैं ।
सूरज बन गुरु शिष्य को
पुत्रवत स्वीकार करते हैं।
अर्जुन और एकलव्य ने
अपनी निष्ठा और भक्ति
श्रद्धा आस्था सम्मति से
गुरु को परमेश्वर का आसन
पर आसीन किया ।
वारुणी गुरु आज्ञा
सिर माथे रख
पानी की मेढ़ रोकने के लिए
स्वयं नाली में लेट गया
गदगद गुरु वारुणी को
गले लगा, धन्य हुए।
यही गुरु भक्ति
हमारे संस्कार हैं ,
हमारी संस्कृति है ,
हमारी सम्पन्न धरोहर है
महाभारत की कथा कुछ ऐसी बनी
गणेश जी ने निरंतर कथा लिखी
वेद व्यास मुनि ने समापन परिणती दी
ऐसे गणपति ने शिष्य बन
गुरु की गरिमा उन्नत की।
भगवान बुद्ध और शिष्य,
गुरु नानक और शिष्य,
पैग़म्बर, गुरु संदीपनी,
राम क्रिशन परमहंस ,
विवेकानंद सभी ने
इस पावन पवित्र परम्परा को
गौरवान्वित किया और
इस संस्कृति को भव्य बनाया।
डॉ करुणा भल्ला