गुरु वन्दना
नित प्रात वन्दन कीजिए,कर जोड़ गुरु के ध्यान में।
उत्कर्ष जीवन का निहित,गुरु से मिले शुचि ज्ञान में।।
उनकी करें सेवा सदा,पालन करें आदेश का।
जीवन सरल सीधा बने,अवसान हो हिय क्लेश का।।१।।
संसार में गुरुश्वेष्ठ सा , कोई नहीं यह जानिए।
वह व्रम्ह है वह विष्णु है,शंकर वही यह मानिए।।
नित मार्ग आलोकित करे,पथ का प्रदर्शक नित्य बन।
उसकी कृपा से ही छॅंटे, अज्ञानता का तम सघन।।२।।
गुरु ज्ञान की महिमा बड़ी,शुचि मार्ग दिखलाती सदा।
कल्याणकारी सिद्ध जो , शुचि कर्म सिखलाती सदा।।
आलोक जीवन में भरे,अज्ञानता का नाश कर।
पूजित हुई जग में सदा, गुरु ज्ञान की महिमा प्रखर।।३।।
**माया शर्मा, पंचदेवरी, गोपालगंज (बिहार)**