गुरु गरिमा
हृदय में गर गुरु के भाव जग गए,
तो समझो इस धरा पर, पांव जम गए।
जग हैं अंधकूप,गुरु राह दिखाते,
जुड़े जो गुरु से,आशीष हैं पाते।
गुरुज्ञान बिना जीना,क्या जीना,
जुड़े सदगुरु से , ज्ञानरस है पीना।
जिसमें शिष्यत्व के,भाव जग गए,
तो समझो इस धरा पर, पांव जम गए।
गुरु की कृपा सहारे,बढ़ते जाएंगे,
मन में गुरु स्मरण ही, दुहरायेगे।
मनचाहा वर तब ही हम पाएंगे,
निशिदिन गुरु,गुणगान गायेंगे।
गहरे से गहरे सब,घाव भर गए,
तो समझो इस धरा पर पांव जम गए।
रामनारायण कौरव