गुरु पुरनिमा
आज गुरु पूर्णिमा पर एक ओर हटकर मेरी कलम घिसाई
विधा 30 मात्रिक छंद
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कायनात के हर जर्रे ने मुझको ज्ञान सिखाया है।
किसे कहूँ मैं आज गुरु फिर मन मेरा चकराया है।
मां ने माना सबसे पहले मुझको शब्द बुलाया है।
पर इस से आगे कितनो ने अपना फर्ज निभाया है।
अच्छा और बुरा क्या है सबकी अपनी ही थाती है।
मेरे मन के ईश्वर ने ही निर्णय पर पहुंचाया है।
कृष्णम वन्दे जगतगुरु माना यह जुमला अच्छा है।
श्री कृष्ण को भी तो आखिर किसी ने मार्ग दिखाया है।
दुनियां पागल बनती फिरती किसी एक को गुरु चुनकर।
गुरु कौन है इसको लेकर सारा जग भरमाया है।
खोट गुरू में नही कभी भी यह हो ही नही सकता।
मतिअंधो ने फेर में पड़कर इस तथ्य झुठलाया है।
पांव पूजते जाने कितने कितने कान फुंकाते है।
गुरु नाम पर पाखंडियो ने ऐसा चलन चलाया है।
आत्म ज्ञान से बढ़कर आखिर कोई ज्ञान नही होता।
जिसने पूजा निज मन को उसने ही सद्गुरु पाया है।
इक पन्थ दिखाया जुगनू ने तो क्या ?सारा तिमिर गया।
इन खद्योतो के आगे तुमने सूरज ठुकराया है।
मेरे तो गुरु जाने कितने सबको शीश नवाता हूँ।
हे परमात्मा सबको रखना जिनने पाठ पढ़ाया हैं।
******मधुसूदन गौतम