गुरु नानक देव जी की शादी का एक दिन
सितम्बर 1951 की बात है, एक घर का आँगन सूना पड़ा था। घर के सभी सदस्यों की आँखें नम थी, परन्तु यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा था कि वह खुशी के आंसू है या ग़म के!
पंजाब में स्थित बटाला के एक गाँव में मनु नाम का एक अत्यंत गरीब मज़दूर रहता था जिसकी दो पुत्रियाँ प्रीति एवं गुड्डी हैं। मनु की बड़ी बेटी प्रीति का विवाह चार बरस पूर्व, आज ही के दिन यानी गुरु नानक देव जी के विवाह के दिन हुआ था। गुरु नानक देव जी सिखों के प्रथम गुरु हैं एवं उनका विवाह इसी गाँव में 1487 में “माता सुलखनी” सुपुत्री मूल चन्द जी के घर हुआ था इसी लिए इस दिन का स्थानीय निवासियों के लिए अलग ही महत्व है।
गुरु जी का जन्म हिन्दू धर्म के उच्च कोटि के खत्री मेहता कालू के घर मैं हुआ था परंतु ३० वर्ष की आयु के बाद से वह सिख धर्म के प्रचार में जुट गये थे।
आज के दिन गाँव के हर घर में जश्न का माहौल होता है। सभी आने वाली बारात की तैयारी में जुटे होते है, क्यूँकि गुरु की संगत बारातियों के रूप में गुरुद्वारा बेर साहिब (सुल्तानपुर) से आरंभ कर गुरुद्वारा डेरा साहिब (बटाला) की ओर प्रस्थान करती है, जैसे कि गुरु जी के वैवाहिक गठबंधन के दिन हुआ था। इस दिन बटाला के लोग अपनी अपनी क्षमता के अनुसार ज़रूरी सामान एकत्रित करते है जो उन बच्चियों को दहेज के रूप मे दे दिया जाता है जिनका लगन आज ही के दिन सामूहिक तौर पर किया जाता है।
दरिद्रता के कारण प्रीति का विवाह भी ऐसे ही आयोजन में हुआ था, परंतु उन दिनों बँटवारे के समय सांप्रदायिक महौल के कारण साज समान की व्वस्था ना हो पायी। जिसके परिणाम स्वरूप आज भी प्रीति के ससुराल वाले उसे प्रताड़ित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते।
अब की बार गुड्डी की शादी है। मनु व उसकी पत्नी राधा इसी चिंता मे हैं कि अगर गुड्डी की बार भी किसी कारण साज समान किंचित रह गया तो उसे भी कहीं प्रीति की तरह तह उम्र ताने ना सहने पड़े।
उसी प्रकार गुड्डी भी काफ़ी सहमि हुई है। वह अपनी जीजी की स्तिथि से भली भाँति परिचित है। वैसे तो वह केवल १५ वर्ष की होने के कारण ब्याह शादी का इतना महत्व नही समझती, पर जो भी उसकी बहन ने सहा और बताया उसके मुताबिक़ एक धारणा बनाए बैठीं हैं।
देखा जाए तो गुड्डी ख़ुश भी है क्यूँकि उसे रोज़ हार शृँगार करने का अवसर भी मिलेगा अपने ब्याह के पश्चानत जो कि उसे सबसे ज़्यादा पसंद है।
फ़िलहाल तो वह अपनी बड़ी बहन से बालों को ले कर खटपट कर कर रही है क्यूँकि उसे बाल खुले रखने हैं और प्रीति उन्हें भाँधने की हट कर रही है।
ख़ेर वह शुभ घड़ी आ पहुंची। गुरु रूपी संगत बारात के तौर गुरुद्वारा साहिब के द्वार पहुँच गयी है। बैंड बाजे के साथ जश्न अपने चर्म पर है। गुरुद्वारे के हेड ग्रंथी हाथ मैं सरोंपाऊ एवं फूलों की माला लिए खड़े है। बारात का स्वागत होता है, कुछ जल पान आदि के उपरांत सामूहिक विवाह आरम्भ होता है।
नम आँखों से गुड्डी के माता पिता इस अरदास मे हैं कि “ है भगवान अब आप ही हमारी लाज रखो”।
पूरा कार्यक्रम मंगल मय सम्मपूर्ण होता है तथा गुड्डी के साज समान मे भी कल्पना से अधिक वस्तुओं की व्यवस्था हो जाती है। भोजन में भी विभिन्न शाही व्यंजन उपलब्ध हो जाते है जैसे कि किसी शाही आयोजन में हो।
अब विदाई के समय अपनी प्यारी सी गुड्डी को विदा करने के बाद मनु व राधा भगवान के समक्ष हाथ जोड़े और आँखों में नीर भरे बैठें हैं।