*”गुरु दीक्षा”*
“गुरु दीक्षा”
सुल्तानपुर आश्रम में हर साल गुरु महाराज जी गुरु पूर्णिमा पर्व पर आते ,तीन दिन रुकते प्रवचन सत्संग करते हुए गुरु दीक्षा देकर वापस अपने आश्रम लौट जाते थे।
सुल्तानपुर ग्राम निवासी सभी भक्त गुरु जी के दर्शन करने फल फूलमाला ,मिठाई अन्य सामग्री लेकर आते थे।कुछ देर सत्संग सुनते दूसरे दिन गुरू दीक्षांत समारोह होता ,
जीवन से जुड़ी हुई अपनी समस्याओं का निराकरण भी करते थे।
एक अधेड़ उम्र की महिला सुशीला अपनी बहू रेणु को साथ लेकर गुरु दीक्षा ग्रहण कराने के लिए आई थी।
सुशीला देवी ने गुरु जी अकेले में प्रश्न किया उन्होंने गुरुजी को बतलाया – गुरुजी मेरी बहू रेणु मेरा कहना नहीं मानती है ,अपने मन का ही कार्य करती है और कुछ बोलो तो जुबान लड़ाती है बहस करती है उल्टे मुँह जवाब देती है ।इस दुर्व्यव्हार से मैं बहुत परेशान व दुःखी रहती हूं और रातों को नींद नही आती है दिन ब दिन मेरी सेहत भी बिगड़ते जा रही है।
बुढ़ापे में चिड़चिड़ापन भी आता है और मैं खीज उठती हूँ बहू की बातों से मन बहुत खिन्न हो जाता है।
सारी बातें बतलाते हुए गुरुजी से निवेदन करती है कि आप कोई इस समस्या का समाधान निकालें …….! !
गुरु महाराज जी ने सुशीला जी की पूरी बात सुनकर कहा ठीक है ,आपकी परेशानी का हल निकाल कर कोई उपाय बतलाता हूँ।
आप सुबह बहू को गुरू दीक्षांत समारोह” में ले आना …..मैं कोशिश करता हूँ ,आपकी समस्या को कोई हल ढूढ़ समाधान निकल सके। गुरुजी को सादर प्रणाम करते हुए सुशीला आश्रम से चली आई।
दूसरे दिन सुबह अपनी बहू रेणु को गुरु दीक्षांत समारोह में लेकर आई।
रेणु ने गुरुजी के चरणों में वंदन नमन करते हुए फूल माला ,श्री फल मिठाई अर्पित करती है।
गुरु दीक्षांत समारोह शुरू होने पर गुरु दीक्षा ग्रहण करने के बाद रेणु भी अपनी समस्या बतलाती है और कहती है कि -गुरुजी मेरी सासु माँ दिन भर मेरे पीछे पड़े रहती है हर बातों में रोकटोक लगाती है और कोई भी काम करती हूँ उसमें कोई न कोई मीनमेख गलती ढूढकर निकालते ही रहती है।
मैं क्या करूँ अपना जीवन स्वतंत्र रूप से जीना चाहती हूं उसके लिए कोई ऐसा उपाय मार्गदर्शन दीजिये जिससे अपना जीवन सफल सुखद बना सकूँ।
घर परिवार का माहौल अच्छा बना रहे और सासु माँ मुझसे हमेशा खुश रह सके………
गुरुजी ने कहा – ठीक है कल सुबह जल्दी नहा धोकर आ जाना ..रेणु ने गुरुजी को सादर प्रणाम करते हुए घर वापस लौट आई थी।
सबेरा होते ही घर के सारे कार्य निपटाते हुए आश्रम पहुँच गई।
गुरुजी ने घोड़े की लीद को एक ताबीज में भरकर रेणु को दे दिया और रेणु से कहा इसे गले मे या हाथ के बांह में बांध लेना पहन लेना।
घर पर जब भी सासु माँ कोई कार्य करने को बोले या कहे तो उस कार्य की तुरंत ही बिना कुछ बोले उस कार्य को चुपचाप से कर लेना।
गुरुजी गाँव वालों को सत्संग ,प्रवचनों द्वारा जीवन में सही दिशा निर्देश देते हुए गुरु दीक्षांत समारोह के बाद अपने आश्रम वापस लौट गए।
रेणु ने गुरुजी के बताए गए मार्गदर्शन का अनुसरण करते हुए घर गृहस्थी का कार्य करने लगी थी। जब भी सासु माँ कुछ काम करने को कहती चुपचाप उस काम को झट से कर देती थी।
बाकी समय अपना कार्य समाप्त कर गुरु मंत्र जप करते रहती थी ऐसे ही धीरे धीरे जीवन में परिवर्तन होने लगा था सासु माँ भी बड़ी खुश रहती थी ,कोई भी काम करने को बोलती थी तो झट से रेणु उसे पूरा कर देती थी और न जुबान लड़ाती न कोई बहस करती थी।
सुशीला भी मन ही मन सोचती कि ये सब अचानक इतनी तब्दीली कैसे ….? ये सब गुरुदेव के मंत्र का कमाल चमत्कार है।
एक साल व्यतीत हो गया फिर से अब गुरु पूर्णिमा आ गई हर साल की तरह से इस साल भी गुरुजी आश्रम पर आये सत्संग किया ,प्रवचन सुनाया कुछ लोगों को गुरु दीक्षा दी।
सुशीला अकेले ही गुरुजी से मिलने पहुँच गई फल ,फूलमाला ,श्रीफल ,मिठाई हाथ में लिए हुए गुरुजी को सादर प्रणाम हुए कहती है। गुरुजी आप तो धन्य हैं आपकी बड़ी कृपा दृष्टि हमारे परिवार पर बरसी है हम सभी आपके आशीर्वाद से फलीभूत हो गए हैं।
सुशीला बेहद खुश नजर आ रही थी और गुरुजी से एक विन्रम निवेदन कर पूछती है …
गुरुदेव आपने ऐसा कौन सा मंत्र व ताबीज मेरी बहू रेणु को दिया है जिससे मेरे घर की सारी समस्याओं का निदान हो गया है। जीवन में बदलाव परिवर्तित हो गया है । मेरी बहू रेणु मेरे बताये गए कार्य को चुपचाप से जल्दी से ही कर देती है और बहस भी नही करती उल्टे मुँह जवाब भी नहीं देती है।
गुरु दक्षिणा देकर दोनों हाथ जोडकर बहुत बहुत धन्यवाद देती हैं।
गुजारिश भी करती है कि आपने ऐसा कौन सा मंत्र जप बतलाया है जिससे ये परिवर्तन आ गया है।
कुछ देर बाद रेणु भी फल ,फूलमाला ,मिठाई लेकर गुरुजी से मिलने आती है। गुरूजी को चरण स्पर्श करते हुए गुरु दक्षिणा देकर धन्यवाद देती है रेणु के चेहरे में भी खुशी की झलक दिखलाई पड़ रही थी।
गुरुजी से कहती है कि आपके मार्गदर्शन से मंत्र जप से मेरे जीवन को बदल दिया है और सासु माँ भी आजकल कुछ नहीं कहती है सब कुछ अच्छा चल रहा है पुनः गुरुजी के चरण स्पर्श करते हुए वापस आने लगती है तो गुरुजी कहते है ऐसी ही जीवन में संतुलन बनाए रखना चुपचाप अपना कर्म करते ही रहना।
गुरुजी का आशीर्वाद लेकर रेणु वापस घर लौट आती है।
तीसरे दिन गुरुजी जब विदा होने लगे तब सुशीला गुरुजी से मिलने को आई और पूछने लगी ,गुरू महाराज आपने मेरी बहू रेणु को ऐसा कौन सा मंत्र जप व ताबीज दिए हो उसके बारे में मेरी जिज्ञासा हो रही है कृपया मुझे भी बतलाइयेगा।
गुरुजी कहने लगे आखिर आप क्यों जानना चाहती है ,अब तो आपके घर परिवार में सुख शांति का माहौल बन गया है आप खुश हैं आपकी सेहत भी पहले से बेहतर है और आपको क्या चाहिये …….?
फिर भी सुशीला गुरुजी जी ज़ोर देकर कहने लगी कृपया मुझे भी कुछ ऐसा मंत्र दीजिये जिससे अपने अंदर भरी हुई बुराइयों को दूर कर अपना शेष बचे हुए जीवन को सुधार लूँ। मुझे भी एक ताबीज बनाकर दे दीजिए ताकि मुझसे कभी गलती ना हो सके।
गुरूजी पहले तो धीरे से मुस्कराए फिर कहते है, ऐसा कुछ भी चमत्कार मैनें नही किया है।मैने तो घोड़े की लीद भरकर एक ताबीज बना दिया था और आपकी बहू रेणु को दे दिया था उसके बाद उससे कहा था कि जो कार्य सासु माँ करने को कहे या बोले उसे तुरंत चुपचाप से कर देना मना मत करना बहस मत करना ….बस इतना ही कहा था।
आपकी समस्या का समाधान आपके पास ही मौजूद है ,इसमें आप दोनों की भलाई समझी और समस्या का निदान हो गया एक पंथ दो काज मैंने कोई चमत्कार नही किया है।
अपनी समझदारी से जीवन में संतुलन बनाए रखने के लिए कुछ उपाय बतला दिए ताकि एक पक्ष तराजू का झुक जाय और जीवन का संतुलन बराबर हो जाय बस इतना ही ….
ये अपनी समझदारी दिमाग का खेल है अपने व्यवहार में संतुलन बनाए रखना, सहन शक्ति की मजबूत रखना मंत्र जप इसमें ही सफल जीवन का गहरा राज छिपा हुआ है और जीवन में कुछ भी नहीं है।
गुरूजी अपने आश्रम की ओर बढ़ते हुए चले गए, और सुशीला गुरूजी की बातों को चिंतन मनन करते हुए अमल में लाते हुए अपने व्यवहार में संतुलन बनाए रखते हुए *गुरू दीक्षा मंत्र जपते हुए मौन साधना में लीन हो गई थी ….! ! !
शशिकला व्यास✍
स्वरचित मौलिक अधिकार