गुरु ज्ञान
गुरु बिना ज्ञान कहां रे,
ज्ञान बिना दान कहां रे।
दान बिना मान कहां रे,
मान बिना शान कहां रे।।
शान बिना नाम कहां रे,
नाम बिना धाम कहां रे।
धाम बिना राम कहां रे।।
कर्म बिना धर्म कहां रे,
धर्म बिना शर्म कहां रे।
शर्म बिना नर्म कहां रे।।
जैसे –
सदस्य बिना परिवार कहां रे,
परिवार बिना गांव कहां रे।
गांव बिना पंचायत कहां रे,
पंचायत बिना प्रखंड कहां रहे।।
प्रखंड बिना जिला कहां रे,
जिला बिना राज्य कहां रे।
राज्य बिना देश कहां रे,
देश बिना महादेश कहां रे।।
महादेश बिना संसार कहां रे।।।
कवि – जय लगन कुमार हैप्पी ⛳