गुरु…! गूगल दोनों खड़े, काके लागूं पाय….!
” आधुनिकता में कुछ भ्रम हुआ…
गुरु गूगल दोनों खड़े काके लागूं पाय…!
आधुनिकता की सोच बन गई है…
गूगल इंजन को सर्च करो तो ,
सब कुछ इसमेें मिल जाए…..!
फिर ‘ गुरु ‘ की अब आवश्यकता क्या…
यही सोच आज हम सब में,
अज्ञानता की कड़ी बन ,
हर जगह भिन्न-भिन्न भ्रम फैलाए…! ”
लेकिन…..!
कह गए सनातन्-सभ्याता धर्म हमारा…!
गुरु ने ही दिया गूगल तो ,
ये भ्रम कहाँ से आए…!
बिन ” गुरु ” गूगल कैसे…!
बिन विद्युत ये चले कैसे…!!
जो तम-गम को दूर भगाए…
वह ही ” गुरु ” कहलाए…!
जो तड़ित पर आश्रित रह जाए…
जो तपन से निश्चल (Hang) हो जाए…!
जिसकी मति, नो सिग्नल में भंग हो जाए…
वह कैसे ” गुरु ” के समतुल्य हो जाये…!
सुनो सखा..! बन्धु-बांधव मेरे…!
जो तप कर…
ज्ञान-गंगा की उद्गम बन जाए…!
पवित्र ज्ञान की निर्मल नीर जो बहाए…
वह ही ” गुरु-वर ” कहलाए…!
सदा ही रहेगा ” गुरु ” ही भारी…
क्या….? औकात गूगल तुम्हारी…!
जाना नहीं है क्या तुमने…?
एकलव्य जैसे धनुर्धर वीर ने ,
गुरु वर को ” स्व अंगुष्ठ ” दान किए…!
एक मृतिका-मूर्ति को…
अपना श्रेष्ठ ” गुरु ” मान लिए…!
सुन गूगल… ” गुरु ” की कृपा हमारी…
बंद आंखों से एक तुच्छ शिष्य ने ” अदृश्य स्वान ”
पर उत्कृष्ट लक्ष्य भेद है मारी…!
तुम ” गुरु ” की खोज हो…
आधुनिकता की रोग हो…!
कहे शिष्य बलदेव आवारा…
अतुल्य ” गुरु-वर ” को सदैव नमन हमारा…..! ”
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