*गुरु के चरण धोने से तक़दीर धूल गई*
गुरु के चरण धोने से तक़दीर धूल गई
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गुरु के चरण धोने से तकदीर धुल गई,
बेड़ियों में जो बंद थी जंजीर खुल गई।
मुश्किलों के दौर में आचार्य संग खड़े थे,
टेढ़ी-मेढी थी ड़गर सीधी राह मिल गई।
उल्टे जूते गुरु जी के जो सीधे कर दिए,
बदले में बुद्धि की सीधी सीढी मिल गई।
अशीर्वाद का साया सिर पर ही मंडराये
सोये भाग्य जाग उठे जागीर मिल गई।
कैसे गाऊँ गुरुजी की महिमा मनसीरत,
रहमत ए रौशनी में तो तहवील मिल गई।
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सुखविंद्र सिंह
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)