गुरु कुल के प्रति गोपी छंद
गुरु कुल के प्रति ÷
गोपी छंद 15
आदि में त्रिकल द्विकल
अंत में गुरू
××××÷××××××
हमारे प्यारे गुरु कुल में।
सभी से न्यारे गुरुकुल में।
मनोहर शुभ आशीष धरें।
व्यवस्था सदा मनीष करें।।
सराहें पटल सभी मिलके
छंद सब भाव बुनें दिल के ।
गगन सम तारे गुरु कुल में।
हमारे प्यारे गुरु कुल में।
जहाँ पर शशि सुरेन्द्र शोभें ।
जहाँ पर केतन मन लोभें ।
मिले हर बार प्रतीक्षा से ।
अरुण की सही समीक्षा से।
सीखते सारे गुरु कुल में।
हमारे प्यारे गुरु कुल में।
यहाँ पर्वत सब भार धरें ।
यहाँ राहुल शुभ काज करें।
प्रीतिमा पटल देख पुलकें ।
प्रजापति विजय रवी हुलकें।
पवन सम निष्ठा वान बनें।
सार्थक सुख सोपान तनें ।
बने हैं नारे गुरु कुल में।
हमारे प्यारे गुरु कुल में।
हाथ में मँहदी रचा लई ।
नाम गुरुकुल लिख प्रीत भई।
नर्मदा के तट सुख पाया ।
हमें आनंद खूब आया।
नेह से हारे गुरु कुल में।
हमारे प्यारे गुरु कुल में।
गुरूजी रचे कहाँ कब हैं।
जतन से छंद रखे सब हैं।
बडोदा के राजेन्द्र गुनी।
भिजायें उनको पुनी पुनी।
प्रशंसा के सब रोगी हैं।
गौर गौरी सहयोगी हैं
मृदुल शानू भी कभी रहे।
नितिन से जाकर कौन कहे।
सहारे धारे गुरु कुल में।
हमारे प्यारे गुरु कुल में।
बहुत से अबतक चुप बैठे
बिना कारण ही कुछ ऐंठे।
जरा भी जोश उमंग नहीं।
नाम है यहाँ जुड़ाव कहीं।
करें क्या समझ नहीं आता।
निभे किस तरह प्रीत नाता।
निखारे सबको गुरु कुल में।
हमारे प्यारे गुरु कुल में।
समस्या पूर्ति करो भाई।
वंदना छंद गुरू गाई ।
नहीं भ्रम पालो अब मनमें।
एकता रखो संगठन में।
पुकारे शारद गुरु कुल में।
हमारे प्यारे गुरु कुल में।।
तनी ये छंद पतंग रहे ।
जमाना देखे दंग रहे ।
भाव में भाई चारा हो ।
प्रेम का सुखद सहारा हो।
लगें जैकारे गुरु कुल में।
हमारे प्यारे गुरु कुल में।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
15/1/24