“गुरु की महिमा” दोहे
“गुरु की महिमा” दोहे
गुरु महिमा गुणगान कर,गुरु को दो सम्मान।
ज्ञान ज्योति का दीप बन,करते भव कल्याण।।
गुरु की गरिमा ईश बढ़,गुरु ब्रह्मा गुरु ज्ञान।
माटी से मूरत गढ़े,गुण अवगुण पहचान।।
गुरु चरणों में स्वर्ग है,तीरथ चारों धाम।
भव सागर से तार दे,गुरु पूजो निष्मका।।
गुरु बिन राह न सूझती,सकल ज्ञान भंडार।
लगन परिश्रम लौ जला,देता हमको तार।।
गुरु जीवन सोपान है, शत शत इन्हें प्रणाम।
गुण देकर अवगुण हरे, कर्म करे निष्काम।।
गुरु ज्ञान भंडार है, पूजो बारंबार।
पाठ पढ़ा कर त्याग का,देता हमको तार।।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी (मो.-9839664017)