गुरु की कृपा अपार (कुण्डलिया)
कुण्डलिया-१
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मिले जिसे भी भाग्य से , गुरु की कृपा अपार।
जन्म सफल उसका हुआ, मन के मिटे विकार।
मन के मिटे विकार, ज्ञान के दीप जलाओ।
जगमग कर लो राह, तमस को दूर हटाओ।
बात यही है सत्य, ज़िन्दगी पुष्प सी खिले।
गुरु चरणों की धूल, भाग्य से जिसे भी मिले।
कुण्डलिया-२
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अति विशिष्ट माता पिता, सबके गुरु महान।
जन्म मिला जिनसे हमें, ऊंचा उनका स्थान।
ऊंचा उनका स्थान, शरण गुरु की हम जाएं।
अनसुलझे हैं प्रश्न, सभी के उत्तर पाएं।
बात यहीं है सत्य, मिलेगी जीवन को गति।
मात पिता के बाद, गुरु ही हैं विशिष्ट अति।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य