“गुरु का ज्ञान”
गुरुवर हो गुण के अम्बर,
तुम सर्वगुण के निधान!!
गुरुवर के मुख सुनकर,
उनका वह दिव्य ज्ञान!!
गुरु नाम पर चली लेखनी,
लिखते थक गए कवि महान!!
जग उदित हुआ गुरु ज्ञान से,
कर्मठ कर्म के शाश्वत निशान!!
कल्प तरु आच्छादित वृक्ष,
हो ज्ञानवान कल्पित प्रधान!!
ज्ञान की वाग्वादिनी वीणा से,
छेड़ी जिसने सात सुरों की तान!!
गुरु में है ऐसी अलौकिक तेज,
यूं करता है सारा जग बखान!!
निर्जीव पुतलों में भी प्राण फूंक दे,
ऐसी उनमें दिव्य ज्योति सी जान!!
बहुत सुकून मिलता है मुझे,
तेरे चरणों में होके समर्पित,
निर्मल हृदय में सरस सलिल,
लगे है उत्तम चरित्र सा मान!!
ज्ञान पंथ कृपाण की धारा,
करके गंग सलिल सा स्नान!!
मर कर भी कभी ना चुका पाऊं,
वो तेरा सम्पूर्ण ऋण मैं अकिंचन!!
है जोर किसका जो यूं मिटा सके,
लिखा हुआ तेरा वो अमिट लेखन!!
गुरुवर तेरे आशीर्वचनों पर चलता है,
संसार के मनुजों के संपूर्ण कर्मों का सार!!
हो सच्चे पथ प्रदर्शक, हो सच्चे मार्ग दर्शक,
भर दी झोली पूरी, और भरा ज्ञान का भंडार!!
कहो “शशांक”! वह कौन अमिय स्वरूपा,
गुरुवर तेरे जैसा हो ज्ञानवान, कीर्तिवान!!
आप ही हो ईश्वर से पहले सर्वोपरि पूजित,
करता हूं मैं आपको शाश्वत दंडवत प्रणाम!!
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©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”
बिलासपुर, छत्तीसगढ़