गुरु अनंगदेव
सेवा और समर्पण के साधक गुरु अंगददेव
सिख पन्थ के दूसरे गुरु अंगददेव का असली नाम ‘लहणा’ था। उनकी वाणी में जीवों पर दया, अहंकार का त्याग, मनुष्य मात्र से प्रेम, रोटी की चिन्ता छोड़कर परमात्मा की सुध लेने की बात कही गयी है। वे उन सब परीक्षाओं में सफल रहे, जिनमें गुरु नानक के पुत्र और अन्य दावेदार विफल ह¨ गये थे।
गुरु नानक ने उनकी पहली परीक्षा कीचड़ से लथपथ घास की गठरी सिर पर रखवा कर ली। फिर गुरु जी ने उन्हें धर्मशाला से मरी हुई चुहिया उठाकर बाहर फेंकने को कहा। उस समय इस प्रकार का काम शूद्रों का माना जाता था। तीसरी बार मैले के ढेर में से कटोरा निकालने को कहा। गुरु नानक के दोनों पुत्र इस कार्य को करने के लिए तैयार नहीं हुए।
इसी तरह गुरु जी ने लहणा को सर्दी की रात में धर्मशाला की टूटी दीवार बनाने को कहा।