गुरुवर बहुत उपकार है
अपने मधुर वचनों से गाते, सृष्टि के अनुराग को,
जो सहज स्वीकारते है, इस जगत के त्याग को।
सब मोह बंधन छोड़ के, धारण किया वैराग्य को,
और कर स्पर्श से, वैदिक किया हैं भाग्य को।
हैं पथिक वे पथ अलौकिक, धर्मयुग निर्माण में,
मस्तिक्ष पर है दिव्यता, और तेज है वरदान में
जो सदा चलते रहे हैं, धर्म के आधार पर,
जिनकी दया रहती है निस दिन, इस दुखी संसार पर,
जिसने सदा मन में बसाया, धर्म के पुरुषार्थ को
नित कष्ट है किंतु चुना है, मुक्ति वाले मार्ग को
कामना करते सदा ही, विश्व के कल्याण की,
और वाणी बोलती है, राष्ट्र के उत्थान की,
जो कर रहे हैं कामना, जो कर रहे हैं साधना,
हर एक पल जो कर रहे है,धर्म की आराधना
‘अहिंसा परमो धर्म’ पथ पर, अग्रसर गुरुवर सदा,
त्याग, तप, करुणा लिए, चलते रहे गुरुवर सदा
है सरोवर ज्ञान का, हर एक का उद्धार हो,
जिनके दर्शन मात्र से ही, हर सुखी परिवार हो,
है विमुख धन धान्य से, बस धर्म ही आधार है,
हर मनुज पर आपके, गुरुवर बहुत उपकार है
दीन दुखियों के मुखों से, आपकी जयकार है,
हर मनुज पर आपके, गुरुवर बहुत उपकार है
करू सेवा तो लाखों, कष्ट भी स्वीकार है
हर मनुज पर आपके, गुरुवर बहुत उपकार है
रवि यादव, कवि
कोटा, राजस्थान
9571796024