गुरुवर डे (शिक्षक दिवस)
सुप्रभात, आदरणीय प्राचार्य महोदय एवं इस सभागार में उपस्थित व्याख्यातागण, सहकर्मी तथा भाइयों एवं बहनो और साथियों आप सभी को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
इस शिक्षक दिवस के शुभ अवसर पर मुझे अपने गुरुओं के लिए दो शब्द बोलने का मौका मिला है इसके लिए तहे दिल से आभार व्यक्त करता हूं।
जैसे कि हम सभी जानते हैं कि शिक्षक दिवस अपने गुरुओं के सम्मान में प्रत्येक वर्ष 5 सितंबर को मनाते हैं और यह 5 सितंबर का जो अवधारणा है वह डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी से जुड़ा हुआ है और डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी से इसलिए जुड़ा हुआ है क्योंकि वह एक शिक्षक थे। ऐसा नहीं है कि डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी से पहले इस देश में कोई गुरु नहीं हुए या कोई शिक्षक नहीं हुए। क्योंकि सबसे पहले भारत में किसी शिक्षक का नाम आता है तो वह महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले का नाम आता है। लेकिन शिक्षकों का जो सम्मान की बात है, वह डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के सहयोग से शुरू हुआ। इसलिए उन्हीं के जन्मदिन के शुभ अवसर पर शिक्षक दिवस के रूप में हम सभी मनाते हैं।
हम सभी जानते हैं कि डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी स्वतंत्र भारत के प्रथम लगातार दो बार के लिए उपराष्ट्रपति तथा द्वितीय राष्ट्रपति के लिए चुने गए। इनका जन्म 5 सितंबर 1888 ई को वर्तमान के तमिलनाडु राज्य में हुआ था। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति से पहले वे भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद, महान दार्शनिक, लेखक और एक आस्थावान हिन्दू विचारक थे। उनके इन्हीं गुणों के कारण सन् 1954 में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया।
जब डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी भारत के दो बार लगातार उपराष्ट्रपति बनने के बाद प्रथम बार जब राष्ट्रपति बने तो उनसे मिलने के लिए कुछ उनके पूर्व शिष्य आए और बोले कि हम आपके जन्मदिन को एक उत्सव के रूप में मनाना चाहते हैं इस पर डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने कहा मेरे जन्मदिन को मनाने के बजाय अगर आप लोगों के द्वारा 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए तो यह मेरा सौभाग्य होगा और मैं अपने आपको गौरवान्वित समझुंगा। इस तरह से यहां से प्रत्येक वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। इसके भी पीछे कारण यह था की डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति रहते हुए भी अपने शिक्षा का योगदान छात्रों को देना नहीं भूले थे। इसलिए यह शिक्षक दिवस उनके जन्मदिन के शुभ अवसर पर एक महत्व रखता है।
इस तरह से हम सभी जानते हैं कि किसी भी सफल व्यक्ति के पीछे किसी न किसी एक गुरु का हाथ होता है क्योंकि बिना गुरु का हम ज्ञान अर्जन नहीं कर सकते हैं अगर किसी तरह से अर्जन कर भी लिए तो उसका सही उपयोग नहीं कर पाते हैं। इसलिए कहते है कि
बिना गुरु ज्ञान नहीं होत!
अपने आप से महान नहीं होत!!”
क्योंकि अगर एक गुरु चाह दे तो अपने शिष्य को फर्श से अर्श तक पहुंचा सकते हैं और अर्श से फर्श तक गिरा भी सकते हैं। क्योंकि हम सभी जानते हैं कि एक बार कुछ गुरुओं को विद्योत्तमा नाम की एक प्रख्यात संस्कृत विदुषी के द्वारा अपमान किया गया था। जिसकी वजह से गुरुओं ने उसे एक मूर्ख व्यक्ति जिन्हें हम कालिदास नाम से जानते हैं उनसे उनका पराजित करा दिया और वहां पर मूर्ख कालिदास को एक महान व्यक्ति बना दिए।
अगर गुरु को अच्छे संस्कारी शिष्य मिल जाए, भले ही वह पढ़ाई लिखाई में कम हो, आर्थिक रूप से कमजोर हो तब भी गुरु उस शिष्य के लिए श्री कृष्ण की तरह अर्जुन का सारथी बन करके पूरे युद्ध तक उनका मार्गदर्शन करते रहेंगे जब तक कि वह विजई प्राप्त न कर सके।
क्योंकि गुरु का ही देन है की चंद्रगुप्त मौर्य जैसे निर्धन व्यक्ति को चाणक्य जैसे गुरु मिल गये तो मगध साम्राज्य का सम्राट बन गया। इसलिए कहा जाता है कि मानव के लिए मानव जीवन के प्रत्येक चौराहे पर गुरुओं के मार्गदर्शन काम आती है।
इन्हीं शब्दों के साथ हम उन सभी गुरुओं के चरणों में शत-शत प्रणाम करते हुए हम अपनी वाणी को विराम देना चाहते हैं जो अभी तक हमारे जीवन में अपना मार्गदर्शन दिए हैं और अभी भी दे रहे हैं।
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@जय लगन कुमार हैप्पी
बेतिया, बिहार।