गुरुभक्ति
१, बांह गहि के हे मेरे सतगुरु कीजै भवसागर से पार,
करूँ मैं कोटि-कोटि वंदना दीजो मम स्नेह -दुलार।
२,हो जिसमें स्वारथ ,सच्ची कैसे जग की प्रीति ?,
भोले -भाले मेरे सतगुरु की सारे जग से सच्ची प्रीति।
३,माया का फैलाकर फंदा जग करे मन को भ्रमित ,
सतगुरु न होते तो कौन देता नादानों को सहारा नित।