*”गुरुदेव”*
“गुरुदेव”
गुरु प्रत्यक्ष परमेश्वर का ही स्वरूप है, जो सांसारिक जीवन में विषय विकारों का मैल धोने के लिए गुरु का पवित्र ज्ञान सरोवर घाट है।ऐसे गुरु के वचन वाणी की शक्ति से भ्रमित मन के सभी संदेह दूर हो जाते हैं और हृदय को परम शांति मिलती है।
परम पूज्य गुरुदेव तो साक्षात दर्शन देते हैं ,और अंतर्यामी प्रभु जी ही है जो मन के अंदर गुप्त रूप से विद्यमान रहते हैं वे साधना शक्ति से ज्ञान का दीपक जलाकर हमारे अज्ञान तिमिर का नाश करते हैं।
उनकी आभामण्डल तेजस्वी कर्त्तव्य बोध करा जीवन में प्रकाशित करती है।
एक मजबूत स्तम्भ बना देती है यदि गुरु के सानिध्य में ज्ञान की ज्योति का साक्षत्कार नहीं होता है तो साधक अंहकार ,भ्रांतियों एवं किंकर्तव्यविमूढ़ हो घने अंधकार में भटकने लगता है।
जब शिष्य परम गुरु पाने की इच्छा शक्ति रख जागृत हो जाता है तब वे अपना सर्वशक्तिमान आनंद मयी स्वरूप दिखला देते हैं उनका स्वभाव कृपा भाव कहलाता है अर्थात यह भी कहा जाता है कि अंहकार के प्रपंचो में उलझे हुए शिष्यों को अज्ञानता से दूर करना पहला कार्य होता है।
इसलिए कहा गया है -*”अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानजंन शलक्या चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः”*
साधक का धर्म है कि वह शास्त्र गुरु मूर्ति यंत्र पीठ एवं तीर्थ जैसे लौकिक साधनों में श्रद्धा भाव रखें और पूर्णतः दिव्यमान वस्तुतः लौकिक गुरु शास्त्र देव मूर्ति तीर्थ स्थल पीठ व मंदिर आदि श्रद्धा भाव के उपयोग करके साधक सिद्धि के शिखर तक पहुंच सकता है इसलिए सद्गुरु जी के शास्त्र ज्ञाता साधना के मर्मभेद को जानने वाला सदाचारी एवं शिष्य के प्रति वात्सल्य प्रेम रखने वाला कहा जाता है।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः
गुरुरसाक्षात परं ब्रम्हा तसमै श्री गुरुर्वे नमः
गुरु ही गोविंद से मिलाते हैं
*”गुरु कुम्हार शिष्य कुम्भ है गठि गठि काढ़े खोट।
अंतर हाथ सहारा दे बाहर मारे चोट।।
*बंदउँ गुरु पद पदुम परागा
सुरुचि सुबास सरस अनुरागा ।
अमिय मूरिमय चरण चारु ,
समन सकल भत रुज परिवारू।।
*सुकृति शंभु तन विमल विभूति,
मंजुल मंगल मोद प्रसूति।
जन मन मंजू मुकुल मल हरनी ,
किये तिलक गुन गन बस करनी।
*श्री गुरुपद नख मनि जोती,
सुमिरत दिव्य दृष्टि हिय होती।
दलन मोह तम सो सप्रकाशु ,
बड़े भाग उर आबई आंसू।।
*उधरहि विमल विलोचन हीके ,
मिटही दोष दुख भव रजनी के।
सूझहिं रामचरित मनि मानिक,
गुपतु प्रगट जह जो जेहि खानिक।।
*गुरु पद पूजा मूल है ध्यान मूल गुरु देह।
मंत्र मूल गुरू वाक्य है मोक्ष मूल गुरू नेह।।
🙏🙏जय गुरुदेव 🙏🙏
शशिकला व्यास शिल्पी✍️