√√गुरुदेव तुम्हारी जय हो (भक्ति-गीत)
गुरुदेव तुम्हारी जय हो (भक्ति-गीत)
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कला सिखा दी जीने की ,गुरुदेव तुम्हारी जय हो
(1)
समझ रहे थे हम धन-दौलत से खुशियाँ आती हैं
पद-पदवी खुशियों की झोली भर-भरकर लाती हैं
सोच रहे थे खुशियाँ हम थोड़ा रुककर लाएँगे
निबट गृहस्थी की जिम्मेदारी से यह पाएँगे
तुमने हमें सिखाया यह आनन्दित इसी समय हो
कला सिखा दी जीने की ,गुरुदेव तुम्हारी जय हो
(2)
खुशी न बाहर से मिलती है तुमसे मिलकर जाना
झरना खुशियों का भीतर जो बहता है पहचाना
मिले न मिले हमें वस्तुएँ जीवन में छिन जाएँ
फर्क नहीं पड़ता इनसे खुशियाँ फिर भी हम पाएँ
मगन हमें रहना अपने में है जीवन निर्भय हो
कला सिखा दी जीने की ,गुरुदेव तुम्हारी जय हो
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451