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14 May 2023 · 1 min read

‘गुमान’ हिंदी ग़ज़ल

उसकी चाहत से, वास्ता कभी, मिरा भी था,
आँधियों मेँ दिया, जला कभी, मिरा भी था।

चाँद शर्मा गया, देखा जो दाग़ था अपना,
चाँदनी रात मेँ, जलवा कभी, मिरा भी था।

उफ़, ये वीरानगी, देखी नहीं जाती मुझसे,
इस बियाबाँ मेँ, आशियाँ कभी, मिरा भी था।

तमाम शायरों ने, छू लिया, बलन्दी को,
इसी सभा मेँ यूँ, चर्चा कभी, मिरा भी था।

विवेक जब जगा, तो लाज आ गई “आशा”,
गुमाँ से, अहम् से, नाता कभी, मिरा भी था..!

##———–##———–#——– —

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 201 Views
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Books from Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
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