गुमान
मैं टीले पर खड़ा, खुद को ऊँचा समझता रहा |
कारवां आया चला भी गया,
खोया गुमानो में अहम् की रंगरलियों में,
थोड़ी सी सफलता में, थोड़ी सी चपलता में,
खुद ही खुद को आगे समझता रहा ||
बातें न सुनता किसी की, हो गुमानो में,
औरों के बेरहमी से अरमां कुचलता रहा |
मैं टीले पर खड़ा, खुद को ऊँचा समझता रहा ||
समय की लगी थाप ऐसी यारों,
खुद को ही शहनशाह समझता रहा |
खुद को ही शहनशाह समझता रहा ||
समय तो समय है, न छोड़ा किसी को,
आँखे खुली तो, विरानियत से सहमता रहा ||
याद कर्मो की आने पे, मौका पाने को मचलता रहा,
संभव न था रंगमंच पर, जिंदगी मरघट किनारे खड़ी थी,
मैं टीले पर खड़ा, खुद को ऊँचा समझता रहा |
मैं टीले पर खड़ा, खुद को ऊँचा समझता रहा |
पं. कृष्ण कुमार शर्मा “सुमित”