गुमान (लघुकथा)
गुमान
शतरंज बोर्ड पर जब मोहरे लगाए गए तो राधा उन्हें बड़े गौर से देख रही थी।जब राधा के बड़े भाई- बहन शतरंज खेलने लगे तो एकाएक उसके मन में एक विचार कौंधा और उसने पास बैठे अपने दादा जी को आवाज़ लगाई-
दादा जी, दादा जी, ज़रा इधर आना। आपसे एक बात पूछनी है।
वे शतरंज खेल रहे बच्चों के पास आए तो राधा ने उनसे पूछा,दादा जी ये बताइए,कि सबसे ज्यादा तो प्यादे हैं फिर कोई घोड़ा है, कोई हाथी है,कोई ऊँट है ,कोई वजीर है तो कोई राजा।ये सारे बने हुए तो प्लास्टिक के ही हैं। कोई टेढ़ी चाल चलता है, तो कोई कहीं से उठकर कहीं पहुँच जाता है और किसी भी मोहरे को मार देता है।प्यादे बिचारे एक घर ही चलते हैं, ऐसा क्यों?
बेटा, शतरंज का खेल बिल्कुल हमारे देश की व्यवस्था जैसा ही है। प्यादे इस देश की जनता है,जो हैं तो सबसे ज्यादा और महत्वपूर्ण पर इन्हें कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है। बाकी घोड़े, हाथी,ऊँट,वजीर, राजा सब बड़े-बड़े अधिकारी-कर्मचारी हैं, जिन्हें विशेष अधिकार मिले हुए हैं, इसलिए ये आड़े-तिरछे कैसे भी चल सकते हैं।
दादाजी,मेरी समझ में बिल्कुल नहीं आ रहा कि आप क्या बता रहे हैं।
तो सुनो, “खेल खत्म होने के बाद सारे मोहरों को एक ही डिब्बे में बंद करके रखा जाता है न, फिर कोई न छोटा होता है और न बड़ा।न कोई प्यादा होता है और न कोई राजा।”
हाँ, ये सही कहा आपने ।पर ये तो वही बात हुई ,जो मेरी मैडम एक दिन क्लास में बता रही थीं।
कौन- सी बात बेटा,क्या बताया था?मैडम ने।
वे कह रही थीं कि मरने के बाद सभी लोग एक ही भगवान जी के पास जाते हैं।चाहे कोई छोटा हो या बड़ा।इसलिए किसी को अपने पर गुमान नहीं करना चाहिए।
अरे वाह! तुम्हारी मैडम ने बिल्कुल सही बताया है।
डाॅ बिपिन पाण्डेय