गुमान ( एक गजल)
गुमान ( एक गजल)
गुमां इतना तुझे किसका लाखो रोज जाते हैं।
अकडकर जो खड़े रहते हवा मे टूट जाते हैं।।
तेरी हर सांस पर पहरा तेरे हर कर्म का लेखा।
ज़रा सिर को झुकाते ही दया दाता की पाते हैं।।
तेरा कुनवा हजारों में तेरी चाहत है लाखों में।
सफ़र जब आखिरी होगा यहीं सब छोड़ जाते हैं।।
रहा मद मे हमेशा ही खुदा खुद को समझ बैठा।
ज़रा ही सांस जो अटकी पल में प्रान जाते हैं।
तेरे पक्के बही खाते ना छूटा एक भी धेला।
तेरे जो लेख हैं ऊपर वही बस काम आते हैं।
कभी तो देख ले अपने अंतर्मन के दर्पण को।।
तेरे जो कर्म हैं प्यारे वही तुझको दिखाते हैं।