गुमनाम शख्शियत…
“मेरी खातिर, तू अपनी ख़ुशी कुर्बान ना कर,
अपने लबों पे मेरा नाम यूँ लाया ना कर…
तन्हा हूँ मैं, मुझे तू तन्हा ही रहने दे,
यूँ मेरी यादों में आकर, मुझे सताया ना कर…..
चले भी जा आज़ाद करके मुझे,
अपनी पलकों में मुझे कैद किया ना कर…
मुक्कम्मल नहीं है मंज़िल मेरी,
अपने क़दमों को, मेरी राहों से जोड़ने की कोशिश ना कर….
मेरी खातिर, तू अपनी मुस्कान जाया ना कर,
हाथों की लकीरों में यूँ मुझे ढूंढा ना कर…
आवारा मुसाफिर जो ठहरा,
अपने नाम के साथ मेरा नाम तू जोड़ा ना कर….
मेरी गुमनाम शख्शियत को,
कोई पहचान देने की कोशिश ना कर…
मेरी बेनाम बंजारी जिंदगी को,
कोई नाम देने की ज़ुर्रत ना कर….”
© बेनाम-लफ्ज़…