गुबार बाहर आने दीजिये
किसी की नि:शब्दता को
हमेशा यूं न जाने दीजिये,
मन टटोलिये, गाँठें खोलिये
कुरेदिये..दबे गुबार बाहर आने दीजिये।
कौन किस गली में भटक गया है,
कौन जाने, कौन समझे..
न बनो उदासीन दो कदम बढ़ो
मार्गदर्शक बनकर मंजिल पाने दीजिये।
खुद के अन्धेरे में अक्सर
लोग डूब जाया करते हैं,
माझी सा, धार में कूदिये तो सही
जान अनमोल है यूं मर न जाने दीजिये।
लक्ष्य की खोज में निकले हुए कदम
राह के पत्थरों से टकराकर न बिखर जायें,
पत्थरों को हटाकर कुछ काँटे उठाकर
नवांकुर पथी को बेरोक जाने दीजिये।
रूक जाए गर पानी किसी रुके हुए गड्ढे में
अनुपयोगी सा होकर बूँद बूँद सड़ जाता है,
कुछ राह बना दीजिये मार्ग सुगम कीजिये
फिर स्वच्छ हो जायेगा बस बह जाने दीजिये।
-डा. यशवन्त सिंह राठौड़