गुबरीले
इन्हें बिठाओं मत गुलाब पर
भंवरों के संग ,
लगते भँवरे जैंसे ,पर जहरीले हैं ।।
इनके चटक रंग से भ्रमित मत
हो जाना ,
ये गोबर में रहने वाले गुबरीले हैं ।।
कभी न पुष्पों की सुगंध है इनको भाती ।
स्वर लहरी तो सपनों तक में इन्हें न आती ।।
इनके रस्ते नहीं कुसुम से
कोमल होते ,
रास इन्हें आते जो पथ पथरीले हैं ।
ये गोबर में रहने वाले गुबरीले हैं ।।
मलिन रहन का निज स्वभाव है न छोड़ेंगे ।
निर्मलता से सदा ये अपना मुँह मोड़ेंगे ।।
अंतर्मन में कपट भरा बाहर
से सुंदर ,
बुद्धि बल से भी होते ये ढीले हैं ।
ये गोबर में रहने वाले गुबरीले हैं ।।
✍️सतीश शर्मा ।