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15 Jun 2023 · 1 min read

गुपाल/भुजंगिनी छंद

विदा निशीथ उतरा विहान।
व्योम गुंजित खग वृंद गान।।
वसुंधरा सज रही अनूप।
अंबरांत का नया स्वरूप।।

सजित सृष्टि अप्रतिम निखार।
उठो सवेरा रहा पुकार।।
कलरव नदी निनाद तरंग।
दर्शित हर उर नई उमंग।।

रंजना माथुर
अजमेर राजस्थान
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
©

Language: Hindi
195 Views
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