गुना कांड
गांधी के देश में गांधीगिरी धूमिल हुई,भूमि के टुकड़े ने भूमि से ही मिला दिया।
हलाहल पी गया जीवन जीने के लिए, फिर भी चैन से जाने न दिया ।
लाठियां बरसती रही पर दर्द किसी को न हुआ बस परिवार ने आंसुओ को यू ही बहा दिया।
वर्दी का रौब ऐसा चला की हर जिंदा दिल मचल गया,। अर्धांगिनी लिपट रही प्रेम पाने को नहीं केवल लठ खाने के लिए ।
हाथ सिहरे नहीं बालपन भी देख कर बस लाठियां भांजी गई गांधी के देश में।
गांधीगिरी धूमिल हुई गांधी के देश,मामा के प्रदेश में।
अब निलंबन का दौर चला है मरहम के तौर पर ,
घटनाएं घटती है चर्चाओं के लिए ,दर्द रह जाती गरीबों के लिए
ऐसा स्वप्न देखा था गांधी ने गांधी के देश में?
बालपन बन रहा आज कुटिल गांधी के देश में
क्या करे गरीब आज खाकी वर्दी वाले देश में।