{{{ गुनाह सुनहरे }}}
भर गए थे जो ज़ख्म ,आज और गहरे हो गए ,
चीखता रहा दिल मेरा , वो सुन के भी बहरे हो गए ,,
तलब थी जिस मुकाम की मुझे, जब जाना हुआ तो,
उस के साथ के लिए क्यों , कदम मेरे ठहरे हो गए ,,
खामोशी से सहते रहे ,उनका हर सितम हम ,
उनपे बात आई तो ,उनके गुनाह सुनहरे हो गए ,,
जाने किस ख्वाबो- ख्यालो में , जी रहे थे हम ज़िन्दगी,
आज रोशनी में आये तो , ख्वाब सारे कोहरे हो गए ,,
जिस इश्क़ में मैंने अपना , सब कुछ लुटा दिया ,
आज हमारे वफ़ा पर भी, लाख पहरे हो गए ,,
हर मन्न्त में मांगी थी मैंने , एक तेरी ही रहमत ,
उस मन्न्त के धागे के भी , आज कितने लुटेरे हो गए ,,