गुनाहों की गौद मे पलता रहा इंसान
गुनाहों की गौद मे पलता रहा इंसान
सदी दर सदी यूहीं ढलता रहा इंसान
मिट्टी के कीड़ों ने हड्डियां भी न छोड़ीं
कब्र के अंधेरों मे गलता रहा इंसान
चीख मौत की कानों मे सुनाई देती रही
बेखबर बराबर चलता रहा इंसान
लाखों कत्ल हुए रोम जर्मन के हाथों
हुक्मे खुदा से फिर भी फलता रहा इंसान
चांद सी सिफत उसके मिज़ाज मे न थी
सदा सूरज की तरह जलता रहा इंसान
मारूफ आलम