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30 Apr 2020 · 9 min read

गुनहगार सो गया l

कहानी
शीर्षक – गुनहगार सो गया l
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ऑडर…… ऑडर……से अदालत में हो रही गहमागहमी कुछ हद तक शांत हो गयी l सिर्फ और सिर्फ दोनों पक्षों के वकील अपने अपने सहायकॊ से खुसर पुसर कर केस की बारीकियों को समझने की कोशिश कर रहे थे l आखिर केस था ही ऎसा l पूरी की पूरी अदालत ठसाठस भरी हुई थी l पंद्रह साल के धनिया पर अपने पिता सुखिया की हत्या पर आज फैसले का दिन था l धनिया मुजरिम के कटघरे में बिल्कुल शांत खड़ा था l एक कौने में बैठी धनिया की माँ पारो, अपनी गंदी साड़ी के पल्ले से मुँह को छुपाए सिसक रही थी l
सबके चेहरे पर चिंता की रेखाये मूक प्रश्न कर रही थी कि धनिया का क्या होगा? यदि उसे सजा हो गयी तो उसकी माँ का क्या होगा? लेकिन यह क्या धनिया के माथे पर सिकन तक नहीं..छाती फुलाए कटघरे में खड़ा है एक अजेय सुकून के साथ l
“सुनवाई आरंभ हो”
“महोदय, कटघरे में खड़ा यह मासूम सा दिखने वाला लड़का धनिया बहुत ही खूंखार अपराधी हैं जिसने अपने पिता सुखिया उर्फ़ सुखीराम वल्द शोभाराम का बड़ी बेरहमी से कत्ल कर दिया l आप इसकी उम्र और मासूमियत को न देखते हुए इसे कड़ी से कड़ी सजा दी जाये”
“महोदय, मेरे अजीज वकील साहब ने बड़ी ही सफाई से इस मासूम बच्चे को मुजरिम साबित कर दिया l मै पूछता हूँ कि क्या उनके पास कोई सबूत है जो यह साबित कर सके कि धनिया मुजरिम है ”
” मै धनिया से कुछ सवाल पूछना चाहता हूँ ”
” अनुमति है ”
” तुम्हारा क्या नाम है? ”
” धनिया ”
” पिता? ”
” नहीं रहा ”
” नाम? ”
” मेरा कोई बाप नहीं, माँ का नाम पूछो साहब बस मेरी माँ है पारो ”
” सुखिया कौन था? ”
” राक्षस था साला ”
” तुमने क्यों मारा?”
” मेरी माँ को परेशान करता था इसलिए साले के पेट में सरिया घुसेर दिया l वही ढेर हो गया एक ही बार में l”
” तुमने सोचा है अब तुम्हारी माँ का क्या होगा”
“कुछ नहीं होगा साहब, पहले से आराम से रहेगी l उसके पास ख़ुद का खोली है l जहाँ काम करती है वो मैम साहब बहुत अच्छा है उसके परेशान नही होने देगी l”

“लेकिन बेटा तुम ये क्यों बोल रहे हो? तुमने किसी को नहीं मारा किससे डर के कह रहे हो” – उसके वकील ने फिर से समझाने की कोशिश की l

” मुझे बचाने की कोशिश न करिये साहब l अपुन और अपुन की माँ बहुत गरीब है l आपका फीस नहीं भर पाएगी l जज साहब का टाइम अपुन को खोटी नहीं करना,,,,, जज साहब अपुन ने ही उस राक्षस को मारा है आप जो सजा दे मंजूर होगी ”
वकील साहब ने अपना माथा पीट लिया और चुपचाप अपनी कुर्सी पर बैठ गये l पारो की सिसकिया तेज हो गयी l पूरी अदालत में एक पल के लिए सन्नाटा सा छा गया जब जज साहब ने अपना निर्णय सुनाया -” धनिया के इकरार-ए-जुर्म को ध्यान में रखते हुए ये अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि उसने एक संगीन जुर्म किया है l जो अपने पिता को मार सकता है वो समाज के लिए एक दिन आतंक का पर्याय बनेगा l इसलिए यह अदालत धनिया की उम्र को ध्यान में रखते हुए उसे बाल सुधार गृह भेजने का हुक्म सुनाती है l अभी वह एक कच्चा घड़ा है यदि उसे सभ्य माहोल मिलेगा तो वो एक सभ्य नागरिक की तरह जीवन यापन करेगाl ऎसी मै आशा करता हूँ l ”

अदालत के फैसले के बाद पारो की सिसकिया और तेज हो गयी l उसने दौड़कर धनिया को अपने सीने से लगा लिया l पुलिस धनिया को पकड़ कर ले गयी और बेबस पारो चीखती हुई रह गयी ….. धनिया……. धनिया…… धनिया…… धनिया.. मेरा धनिया गुनहगार नही है l मेरा धनिया मुजरिम नही है जज साहब l उसे छोड़ दो…. उसे छोड़ दो….. ”
” क्या हुआ पारो क्यों चिल्ला रही हो l ये धनिया कौन है? बताओ मुझे…आठ दिन हो गये तुम्हें मेरे यहाँ काम पर आये हुये हर रोज सोते समय तुम यही चीखती रहती हो l मैं तुम्‍हारे अतीत के बारे जानना चाहती हूँ ” – डॉ रमा ने पारो को झकझोर कर कहा l

पारो ने आँखे खोलकर देखा तो सामने उसकी नई मालकिन खड़ी थी l इस समय सर्वेंट क्वॉर्टर में मालकिन को देखकर उसे बड़ा अचरज हुआ l
” मालकिन आप यहाँ कोई काम था क्या? ”
” हा पारो, मुझे तुम्हारे अतीत के बारे में जानना है l अभी तुम बहुत तेज तेज धनिया धनिया कह के पुकार रही थी l ये धनिया कौन है? तुम उसे मुजरिम क्यों कह रही थी? बताओ पारो l”

” धनिया मेरा बेटा है मालकिन l पंद्रह बरस की उम्र में अपने बाप को मारकर बाल सुधार गृह में सजा काट रहा है l पूरे साढ़े छः साल हो गये l मैंने उसका मुँह तक नहीं देखा l पता नहीं कैसा होगा l lबहुत प्यार करता था हमे l जिंदगी के सारे सुख देना चाहता था l लेकिन भगवान को पता नहीं का मंजूर था l सब कुछ उलट पलट गया l ” – सिसकते हुए पारो एक ही स्वास में कहती चली l

” तू बिलकुल भोली है पारो l मरने दे उसे काहे का बेटा जिसने तेरे सुहाग को उजाड़ दिया l उसे तो जितनी सजा मिले कम है ”

” ऎसा मत कहिए मालकिन वो गुनहगार नहीं है l वो निर्दोष ही सजा काट रहा है ”

” ये तू नहीं तेरी ममता बोल रही है l तू भूल जा उसे l मेरे साथ रह आराम से ”

” नहीं मालकिन, वो मुजरिम नहीं है l उसने एक राक्षस को मारा l क्या राक्षस को मारना गुनाह है l अगर है तो हमारा भगवान भी गुनहगार है, मुजरिम है ”

” तेरा मतलब क्या है पारो ”
” मैं अपने बापू की इकलौती संतान थी l बुढ़ापे की l बापू का व्याह ही बुढ़ापे में हुआ था l जब मैं सोलह बरस की थी तभी बापू चल बसा और अम्मा किसी और के साथ चली गई l मैं बिलकुल अकेली थी lघर के खर्चे चलाना भी मुश्किल होता जा रहा था l मेरे पास अपुन की एक खोली थी जो बापू मरने से पहले मेरे नाम कर गया था l गुजर करने के लिए मैंने अपनी आधी खोली भाड़े पर दे दी धनिया के बापू को l वो हँसमुख स्वभाव का लगभग तीस साल का गबरू जवान था l उसके साथ उसका कोई नही था l नौकरी करने आया था बम्बई में l शाम को हारा थका घर आता तो मुझसे देखा नहीं जाता तो मै उसे खाना खाने को दे देती और वो भी मेरी रुपए पैसे से मदद करता रहता l धीरे धीरे हम लोगों में प्यार पनपने लगा और हम दौनो ने एक मंदिर में शादी कर लिया l सब कुछ ठीक चल रहा था कि एक दिन एक बड़ा सा तूफान आया जिसने मेरी जिंदगी को बर्बाद करके रख दिया l धनिया पेट में था उस बखत जब सुखिया, खोली को बेचने की जिद करने लगा l मैंने उसे मना कर दिया तो उसने बहुत मारा l अब तो वो रोज रोज दारू पीकर आता और गंदी गंदी गालियाँ देकर पीटता l पूरी रात सिसकते हुए निकलती l एक दिन उसके गाँव से चिट्ठी आयी तब पता चला कि वो शादीशुदा है उसका बेटा भी है l मेरे पेरो तले तो जमीन ही नहीं रही l छः महीने की पेट से, मै दिन भर काम करती शाम को मार खाती और पूरी रात सुखिया के द्वारा नोची जाती l क्या करती किस्मत से समझोता कर लिया l एक दिन वो अपने सेठ को लेकर आया l दोनों ने खूब दारू पी l सुखिया टल्ली होकर लुढ़क गया और सेठ ने मुझे दबोच लिया l मै गिड़गिड़ाती रही l मेरे पेट में बच्चा है छोड़ दें लेकिन वो नहीं माना पूरी रात नोचता रहा l जब उसने बताया कि तेरे पति ने पैसे लेकर एक रात के लिए सौपा है तो मुझे अपने आप से नफरत होने लगी l आत्महत्या करने की सोची लेकिन पेट में पल रहे मासूम के कारण न कर सकी l सोचा धनिया के जनम के बाद सब ठीक हो जायेगा लेकिन हालात बद से बदतर होते चले गये l सुखिया को हमसे पैसे चाहिए थे अपनी शराब और अपने घर भेजने को l पैसे के लिये खोली तो बेच नहीं सकती थी, अगर बेचती तो धनिया को कहाँ रखती l खोली को न बिचते देख सुखिया रोज नये नये ग्राहक लेकर आता और रात भर मेरे जिस्म को रौदा जाता l पूरा जीवन नरक बन गया था आत्मा तो मेरी कब की मर चुकी थी सिर्फ शरीर जिंदा था वो भी धनिया के लिये l धनिया भी बड़ा होता गया l उसे सारी बाते समझ में आने लगी l मेरे आँसू उसके क्रोध की ज्वाला बनते गये l एक दिन सुखिया फिर ग्राहक लेकर आया लेकिन धनिया ने उसे मारकर भगा दिया l उस दिन धनिया और उसके बापू में बहुत लड़ाई हुई l सुखिया ने धनिया को सरिया मारनी चाही लेकिन धनिया ने उस लोहे के सरिये को पकड़ कर सुखिया की छाती में घुसेर दिया l उसने वही दम तोड़ दिया l उसके बाद धनिया बहुत रोया l वो हमेशा कहता था “अम्मा अपुन तेरो को इस नरक से मुक्ति दिलाएगा l अपुन से नहीं देखा जाता तेरा हाल l” और उसने सच कर दिखाया l पुलिस आयी और धनिया को पकड़ के ले गयी l अंतिम संस्कार में भी नहीं आया l उसको आग मै ही लगाई l सब कुछ जलकर स्वाह हो गया l “- पारो फूटफूट कर रोने लगी उसकी आंखो के सामने अंधेरा सा छा गया l वो गिरने ही वाली थी कि डॉ रमा ने उसे संभाल लिया l
” शांत रहो पारो शांत ”
” अब शांत नहीं रहा जाता मालकिन l मै क्या करूँ l सब कुछ मेरे साथ ही गलत क्यो होता आ रहा है ”
” सच में पारो, तुम बहुत हिम्मती हो l भगवान शिव ने तो हलाहल सिर्फ एक बार पिया था लेकिन तुम रोज पीती रहीl तुम्हारा धनिया अब तुम्हारे पास रहेगा l मै लेकर आऊंगी उसे सुधार गृह से l कल से तुम्हारे सारे दुख खतम, समझी ”
डॉ रमा नम आँखे लिये अपने बिस्तर पर आ कर लेट गयी l नीद का दूर दूर तक कोई नामो निसान तक नहीं था l सामने की दीवार पर परिवार की तस्वीर उन्हे अतीत की यादो में खोती चली गयी…..कितना प्यार करती थी वो रमेश को l घर से भागकर शादी की सभी के दिलो को दुखाकर l फिर लगी सपने बुनने.. ऎसा होगा… ये होगा…. दो बच्चे होंगे…. साथ में रहेगें.. और भी बहुत कुछ l लेकिन सपने कब किसके पूरे होते हैं l धीरे धीरे एक एक करके सभी सपने टूटते चले गये l रमेश को तो मुझसे प्यार था ही नहीं उसे मेरे डैड की संपत्ति चाहिए थी l हर रोज वह दबाव बनाता की मै अपने घर चली जाऊ और वही आकर रहूँ l लेकिन मेरी खुद्दारी के आगे उसकी एक न चली l छोटे छोटे झगडो ने कलह का रूप ले लिया l आए दिन कलेश और मारपीट l तंग आकर मैंने उससे तलाक ले लिया l… उसके साथ ही ये प्यार रिश्ता सब खतम l
कितनी समानता है मुझमें और पारो में सब कुछ एक सा l लेकिन पारो खुदकिस्मत है उसके पास उसका धनिया तो है… सोचते सोचते डॉ रमा की आँखों से आँसूओ की धारा बह निकली…… अचानक अलार्म की ध्वनि ने तन्द्रा को तोडा तो डॉ रमा ने अपने आँखो को पोछते हुए घड़ी पर नजर डाली l सुबह के सात बज चुके थे l ऑफिस के जल्दी से तैयार हुई lपारो तब तक चाय दे गयी l डॉ रमा ने जल्दी से चाय पी और अपना बैग उठाया l
“मालकिन नाश्ता”
” खाना बना ले अपनी पसंद का दोपहर में आकर खाती हूँ” – कहते हुए डॉ रमा अपनी गाड़ी की और निकल गयी l
पारो अपने काम में व्यस्त हो गयी l खाना बनाया, साफ सफाई की और बैठकर धनिया के बारे में सोचने लगी l तभी गाड़ी के हॉर्न ने उसका ध्यान खींचा l
“पारो, देख मेरे साथ कौन आया है ”
” छोटे मलिक हैं ये क्या “- पारो ने उस लड़के की भेषभूसा देखकर कहा l
” नही पारो पहचान तो इसे l ये तेरा अपना है धनिया l”
क्या,,,,,,,,,,,,,,,,,,, पारो का मुँह खुला का खुला रह गया l दिल की धड़कन बढ़ गयी l दौड़कर उसे सीने से लगा लिया l धनिया और पारो एक दूसरे से लिपट कर रो रहे थे l डॉ रमा की आंखों को भी कुछ मोती नम कर गये l
” धनिया तू कैसा है l मै कितनी अभागी हूँ जो तुमसे मिलने तक न आ सकी l तूने ही तो मना किया था मिलने से l लेकिन तेरी सजा” – पारो ने अनगिनत प्रश्नों की बौछार लगा दी l

“अम्मा ये आपकी मालकिन ही सुधार गृह की मैम है l इन्होने ही मुझ जैसे अभागे को अपनी ममता का प्यार दिया l आज मै पढ़ा लिखा सभ्य इंसान हूँ l जज साहब ने सही कहा था कि मैं भी सभ्य इंसान बन समाज में रह सकूंगा l”

“पारो, मेरे और मेरे बेटे के लिए खाना लगाओ l एक साथ खाना है l” – डॉ रमा ने मुस्कराते हुए कहा l
पारो की आँखो से जलधारा बही जा रही थी l ये आँसू किसी दुख के नही बल्कि खुशी और डॉ रमा की कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए थे l सच में आज उसके बेटे के अंदर का गुनहगार हमेशा हमेशा के लिए सो गया था l

राघव दुवे
इटावा ( उo प्रo)
8439401034

Language: Hindi
2 Likes · 427 Views
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