गुजारिश है अब मान जाओ
शब ए फिराक होती है जब भी
तुम्हारा ही ख्याल दिल में रहता है
मिलते नहीं जब भी तुम मुझसे
ये हिज्र ए मौसम सताता रहता है।।
अब तो आ जाओ तुम बाहों में
है हमसे ये बेरुखी किस लिए
तुमसे ही है अब मेरी ये ज़िंदगी
है फिर ये बेपरवाही किस लिए।।
चोट खाए हुए है हम तो इनसे
ज़ख्म दे गए है तेरी नज़रों के तीर
आकर थोड़ा मरहम तो लगाओ
जां न ले जाये, तेरी नज़रों के तीर।।
दिल में बसे हो मेरे तुम ही अब
कभी तो सामने भी आ जाओ
तेरे हिज्र में तड़प रहा हूं हरपल
मेरे इस अज़ाब को मिटा जाओ।।
तुम्हारे लिए खुली किताब हूं मैं
जानते हो दिल के असरार सभी
हो नाराज़ तो कुछ और सज़ा दो
ऐसे तो न लो मेरे इम्तिहान कभी।।
रूठे इस कदर की भूल ही गए मुझे
मनाना आता नहीं मुझे, क्या करूं
तुम ही राह दो इस गुमगश्ता को अब
कह दो अगर तुम तो मैं चाहे यहीं मरूं।।
ये तेरी बेरुखी अब न सह पाऊंगा
जाऊंगा तो फिर न लौट पाऊंगा
मान जा ए ज़ालिम अब तो, मुझे
डर है तेरे बिन जन्नत में भी न रह पाऊंगा।।