“गुज़रते वक़्त के कांधे पे, अपना हाथ रक्खा था।
“गुज़रते वक़्त के कांधे पे, अपना हाथ रक्खा था।
क़सम से तब भी तन्हा थे, क़सम से अब भी तन्हा हैं।।”
★प्रणय प्रभात★
“गुज़रते वक़्त के कांधे पे, अपना हाथ रक्खा था।
क़सम से तब भी तन्हा थे, क़सम से अब भी तन्हा हैं।।”
★प्रणय प्रभात★