गुज़रते वक़्त की जज़ीर खींच ली जाये
ग़ज़ल
गुज़रते वक़्त की ज़ंजीर खींच ली जाये ।
मिले हैं यार तो तस्वीर खींच ली जाये ।।
सहीह आपका अंदाज़े गुफ़्तगू तो नहीं।
यूं बात बात पे शमशीर खींच ली जाये।।
जो ख़्वाब देख लिये गर हमारी आंखों ने।
तो ऐसा कीजिए ताबीर खींच ली जाये ।।
इन्होंने कर रखी तक़दीर से बग़ावत क्यों।
अब इनके हाथ से तदबीर खींच ली जाये।।
खड़ी है शान से ये अम्न की इमारत गर।
तो भाईचारे की शहतीर खींच ली जाये जाये ।।
हुक़ूक़ के लिए आवाज़ जो उठाये तो।
ज़बान वो बिना ताख़ीर खींच ली जाये ।।
जवाब दे ही चुका ज़ब्त अब “अनीस” मेरा।
कि रूह खींच के ये पीर खींच ली जाये।।
– अनीस शाह “अनीस”