गुजर रहा देश अन्याय की ताफ्तिशों से
गुजर रहा देश अन्याय की ताफ्तिशों से
लूटता,खसोटता हर कोई अपने ही तरीको से
इंसाफ दिला पाउँगा जिस दिन इसे मै
तब जाके सफल जीवन मेरा होगा |
भूख से टूटते उस बचपन को
बेरोजगारी में जी रहे उस यौवन को
कुछ पल अपने मै दे जाऊ
तब जाके सफल जीवन मेरा होगा |
इंसाफ के लिए तरसती नंगी आँखों को
खाकी और खादी का दंश झेल रही जिंदगियों को
एक पल निजात मै दिला पाउ
तब जाके सफल जीवन मेरा होगा |
आग में झुलसे उन बदनों को
अम्ल से ढक गयी खूबसूरती को
निजात दिला पाउ मै इस समाज से कभी
तब जाके सफल जीवन मेरा होगा |
बेघर हुई,आस लगाये उन बूढी आँखों को
जिन्दा लाश बानी समाज की उस दामिनी का
खोया सम्मान पुनः उसका मै लौटा पाउ
तब जाके सफल जीवन मेरा होगा |
हो रही कलंकित माँ भारती को,
खोते निज उसके सम्मान को
मै खादी के दैत्यों से मुक्त करा पाउ
तब जाके सफल जीवन मेरा होगा |