गुजरी जो बीती गलियों से
गुजरी जो बीती गलियों से
हर पगडंडी बोल उठी
खेत की मेड़, नए पुराने पेड़
कुछ पहचाने कुछ अंजान से
बहती हवा ने दी
शिकायत भारी थपकी
कल कल करती नदियाँ भी
सुनाने लगी मीठी झिङकी
आयी बड़े दिन बाद सखी
इतना समय कहां रही
क्या याद करके हमें
हुई तुम कभी दुखी
आंगन पार बूढ़े बरगद
अपना सफ़र तय कर चुके
उनकी छांव तले उगते पौधे
विशाल वृक्ष रूप धर चुके
तुम जो गई वहीं की हो गई
अपने साथियों की सुध ना ली
फिर दशकों तक भुला दिया
कभी भूल कर भी याद नहीं किया
जाने दो शिकवे शिकायत
आओ बैठो मिटाओ थकावट
बालों में तुम्हारे अब सफेदी है
पर मेरे लिए आज भी नन्हीं बेटी है
और अगली बार जब हो आना
इतना लंबा वक्त न लगाना
समय पर हम तो निकल जाएंगे
पर तुम्हारे बचपन के पल खो जाएंगे
चित्रा बिष्ट