गीत _गीत –इश्क में हम ,इस कद्र जले_
गीत –इश्क में हम ,इस कद्र जले
इश्क में हम ,इस कद्र जले
दिल किसी को सोच-समझकर ,दिया नहीं जाता
ये इश्क है ‘देव’ हो जाता है किया, नहीं जाता
जुदा होके जीना तो, मुकम्मल नहीं आशिकों को
गर ना हो दीदार महबूब का तो, जिया नहीं जाता
हसरत बहुत संजोते थे,रहने की उनके दिल में
सुकूं बहुत मिलता था,उनको देख हसीं महफिल में
कैसे भूल जाएँ वो लम्हा,जब नजरों से उनके तीर चले
इश्क में हम,इस कद्र जले
दामन न जाने क्यों ,इस कद्र सजाती थी
जुल्फों में होता चेहरा ,कभी सीने से लगाती थी
उम्र यूँ ही बीत जाये, इस हसीं आँचल चल तले
इश्क में हम, इस कद्र जले
होती थी कितनी हँसी ,उनकी ‘वफा ए चाहत’
‘दर्द ए दिल’ कम कर देती ,उनकी इक मुस्कराहट
देखी जो उनकी बेपनाह मोहब्बत,कितने हसी अरमां पले
इश्क में हम, इस कद्र जले
ना कोई गिला ना शिकवा हमसे, फिर भी दूर वो हो गई
मेरी वो बेपनाह मोहब्बत, बेदर्द जहाँ में खो गयी
रहने लगे फिर दूर-दूर, बस यही बेरुखी खले
इश्क में हम,इस कद्र जले
तन्हा-तन्हा सा आलम है अब औ गम ए परछाईं है
कभी-कभी लगता है ऐसा,याद उन्हे भी आई है
जीते हैं बस इस खवाहिश में,एक बार मिल लें गले
इश्क में हम, इस कद्र जले
शायर देव मेहरानियाँ
slmehraniya@gmail.com