गीत
हे ! जनपथ के राजा
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हम रोज कुआँ खोदे
हम रोज पिये पानी
हे ! जनपथ के राजा
हे ! जनपथ की रानी
बीजों का ताजमहल
धरती में हम बोये
सावन-अगहन-फागुन
धरती पर हम सोये
आकाश जलावन का
ढोई टूटी छानी
हे ! जनपथ के राजा
हे ! जनपथ की रानी
पलिहर की बोआई
है डूबी करजा में
खटनी की शिक्षा है
पहले ही दरजा में
उलझन के घर गिरवी
पशुओं की है सानी
हे ! जनपथ के राजा
हे ! जनपथ की रानी
साँसों के झुरमुट में
आशा के फूल नहीं
अनुभव की चोटी पर
साहस के जूल नहीं
असहज पथ पर लेटे
अबतक दाना-पानी
हे ! जनपथ के राजा
हे ! जनपथ की रानी
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’