गीत
ऐ हवाओ ! बताओ जरा
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प्राण लेकर गई हो कहाँ
ऐ हवाओ ! बताओ जरा
खलबली सी मची है यहाँ
ऐ हवाओ ! बताओ जरा
साथ जिसके हुआ कद बड़ा
ये जवानी हुई थी बड़ी
किस बला ने कहर ढा दिया
हाथ ने भी पकड़ ली छड़ी
हाथ किसका रहा है यहाँ
ऐ हवाओ ! बताओ जरा
कंठ कुछ भी नहीं कह सके
रह गये हकबके-हकबके
आसरों के सभी आसरे
रह गये सकसके-सकसके
शब्द अंतिम हुए क्या बयाँ
ऐ हवाओ ! बताओ जरा
दाख सपने हरे के हरे
घर की सरहद में अब तक पड़े
बात करने की कौन कहे
आज रिश्ते अड़े हैं सड़े
ठेघ पाऊँ कहाँ अब यहाँ
ऐ हवाओ ! बताओ जरा
गोद खाली हुई है भरी
आई कैसी उड़न तश्तरी
देह ऐसा लुआठा किया
फूल से भर गई गागरी
क्यों उजड़ा ये हँसता जहाँ
ऐ हवाओ ! बताओ जरा
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ