“गीत”
स्थाई-
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माँ वाणी को शीश झुकाना |
वन्दन अर्चन करते जाना ||
कविवर तुम समाज के दर्पण |
दोष दिखाना राह बताना ||
माँ वाणी को शीश झुकाना…..
अंतरा –
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कठिन दौर में मानव जीवन
फटे हृदय हैं उधड़े सीवन |
स्वार्थ दम्भ का विस्तृत दामन
निस्वार्थ तुम्हें चलते जाना
माँ वाणी को शीश झुकाना …….
कलम तुम्हारी राह दिखाए
भले बुरे का ज्ञान कराए |
बस इतनी है विनती भैया
जोश नया नव चेतन लाना
माँ वाणी को शीश झुकाना …..
कुछ हैं विमुख कर्त्तव्य पथ से |
कुछ भटके अहंकार मद से |
कलम उठाना जब भी कविवर
सुगम राह उनको दिखलाना
माँ वाणी को शीश झुकना ……
“छाया”