गीत
“कृष्ण जन्माष्टमी”
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तर्ज़- फूल तुम्हें भेजा है ख़त में…
द्युति दामिनी चमक रही है तीक्ष्ण बौछारें करतीं वार।
देवकी पीर सही न जाए कृष्ण ले रहे धरा अवतार।
भादों मास के कृष्णपक्ष में
जन्मे कैद में प्रभु घनश्याम,
शीश सूप धर वासुदेव जी
पहुँचे गोकुल नंद के धाम।
ढोल-नगाड़े बाज रहे हैं
चौखट सज रही बंधनबार,
चंदन पलना सेज बिछाई
यशुमति आँगन छाई बहार।
अद्भुत माया कभी न देखी
जिसकी महिमा अनंत ,अपार-
द्युति दामिनी चमक रही है….।
खनके कंगन बाजे पायल
वैजंती हृदय राजत माल,
पीत वसन अति शोभा न्यारी
मोर-मुकुट, लड़ी शोभित भाल।
दूध,दही से पूरित हड़िया
माखन-मिश्री सज रहे थाल,
मैया यशुमति वारी जाएँ
ठाड़ी निहारें अपना लाल
सखि सलौनी धूम मचाएँ
झूमें-नाचें नंद के द्वार-
द्युति दामिनी चमक रही है….।
नाचें गैयाँ गाएँ नदियाँ
ग्वाले धाएँ छोड़ के काम,
मंगल गीत भवन में गुंजित
नौबत बाजे नंद के धाम।
मुरलीधर ने जन्म लिया है
खुशियाँ मनाए गोकुल धाम,
स्वर्गलोक सा सुख अरु वैभव
तर गए लोग नहीं कुछ दाम।
जन-मानस का दुख हरने को
करने आए कृष्ण उद्धार-
द्युति दामिनी चमक रही है…।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर