गीत
विरह गीत
साँझ-सवेरे खग का कलरव
मुझको बहुत रुलाता है,
भीगी पलकें सागर का तट
तेरी याद दिलाता है।
तुम बहार मेरे जीवन की
मन में चित्रित परिभाषा
उर की सुंदर मधुशाला हो
लब पर मुखरित अभिलाषा।
धानी चूनर कंगन देखूँ-
झूला रास न आता है।
तेरी याद दिलाता है।।
तेरे यौवन के जादू से
मेरी नज़रें बहकी थींं
तेरे गजरे की खुशबू से
मेरी रातें महकी थीं।
बूँदों की रुनझुन सरगम पर-
सावन गीत सुनाता है।
तेरी याद दिलाता है।।
राह देखते तेरी मैंने
हर पल दीप जलाए हैं
भाव शब्द में गूँथ-गूँथ कर
कितने गीत बनाए हैं।
खुद से कब तक बात करूँ मैं-
मन मेरा घबराता है।
तेरी याद दिलाता है।।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
महमूरगंज, वाराणसी।(उ.प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर