गीत
“मुझे बचालो मेरी माँ!”
प्रभु कृपा से गर्भ में आई
मुझे बचा लो मेरी माँ,
बोझ नहीं हूँ इस दुनिया पर
गले लगा लो मेरी माँ!
मैं आँचल की गौरव गाथा
चींखती लाचार होकर
तड़प-तड़प ममता पूछेगी
क्या मिला उपहार खोकर।
बेटी होना पाप नहीं है-
आत्म जगा लो मेरी माँ।
मुझे बचा लो…..
मैं भी तो हूँ अंश तुम्हारा
मुझको माँ स्वीकार करो
सीता, लक्ष्मी बन कर आई
बेटी पर उपकार करो।
बिलख-बिलख अनुरोध करूँ मैं-
पास बुला लो मेरी माँ।
मुझे बचा लो….
मातु-पिता की दुआ बनी मैं
कुल की शान बढ़ाऊँगी
अंतरिक्ष में भर उड़ान मैं
जग पहचान बनाऊँगी।
बेटा-बेटी कुल के दीपक-
मान बढ़ाओ मेरी माँ।
मुझे बचा लो….
मैं तेरे सपनों की गुड़िया
आँगन-द्वार सजाऊँगी
सुख-दु:ख का मैं सेतु बनकर
जीवन पार लगाऊँगी।
बेटी तो आधार जगत का-
शपथ उठा लो मेरी माँ।
मुझे बचा लो मेरी माँ!
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
महमूरगंज, वाराणसी।(उ.प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर