गीत
‘सावन की रुत’ गीत
कागा दे संदेश पिया को
सावन की रुत चमन खिलाए।
क्यारी-क्यारी महके बेला
मेरा भीगा बदन जलाए।
बैरी बदरा गरजे-बरसे
बागों में हरियाली छाई
मोर, पपीहा, कोयल झूमें
सावन रुत मतवाली आई।
राह तकूँ मैं दीप जलाकर-
पिया मिलन की लगन लगाए।
मेरा भीगा बदन जलाए।।
लंबी पेंग गगन को चूमे
गोरी का गजरा लहराए
धानी चूनर ,बहका कजरा
काले-काले बदरा छाए।
बूँदों ने छेड़ी है सरगम-
जगमग जुगनू वन इठलाए।
मेरा भीगा बदन जलाए।
पायल, बिंदी, चूड़ी, कुमकुम
जीवन का श्रृंगार सजन से
सखी-सहेली छेड़ें मुझको
हँसी-ठिठोली करें पवन से।
चमक रही है चमचम बिजली-
रिमझिम बारिश अगन लगाए।
मेरा भीगा बदन जलाए।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
महमूरगंज, वाराणसी (उ प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर