गीत
गीत
पहले मिलन तो बाद में ,
परिणय जरूरी है !!
दिन हैं कहां अपने हुए ,
खामोश रातें हैं !
सपने नहीं रीते रहे ,
सौगात बातें हैं !
यह आज अपना हो न हो ,
रखना सबूरी है !!
चाहें सभी खुशियां खड़ी ,
हों द्वार अपने भी !
उपलब्धि पर नजरें टिकी ,
हैं स्वाद चखने भी !
संध्या खिली मनुहार ले ,
लगे सिंदूरी है !!
बोया वही काटें सभी ,
पर श्रम जरूरी है !
जो भी मिले स्वीकार्य है ,
चाहें न पूरी हैं !
जो भाव मन खिलते रहे ,
लगते कपूरी हैं !!
सेवा समर्पण चाहती ,
फिर रंग खिलते हैं !
पल में मिटे हैं दूरियां ,
मधु छंद सजते हैं !
बहके अगर है रूप तो ,
चढ़ी मगरूरी है !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्य प्रदेश )