गीत
अर्थ के अब अनर्थ हो गये
शब्द है मृत्यु के पाश मे।।
व्याकरण लापता हो गया
मुहावरे भी गति विहीन है
सूक्तियां क्यों अब मौन हैं।
कहावतें भी अब विलीन है।
रस हुए है नीरस यहां
भाव है आज परिहास में।।
छंद में होता छल छंद अब।
शब्द शक्ति भी शक्तिहीन है।
अलंकारों का सौन्दर्य भी
लग रहा आज कितना दीन है।
हाट मे बिक गयी है कलम
काव्य पंक्तियाँ है संत्रास में।।
सृजन खो गया है कहीं
तालियों की अनुगूंज में।
दाग दिख जाए जैसे कहीं
चंद्रमा पर किसी दूज में।
घोर तम ये छटेगा कभी
काव्य जिंदा इसी आश मे।
अनिल अयान सतना।