गीत
गीत
1222/1222/1222/1222
कि मैंने दिल की खामोशी को कागज पर उतारा है।
कभी जो कह नहीं पाया लिखा वो हाल सारा है।
जो बचपन खेल में बीता वो सोचो कैसी मस्ती थी।
नहीं थे रंक भी फिर भी वो राजाओं सी हस्ती थी।
जो मुड़कर देखता पीछे तो दिखता वो नज़ारा है।(1)
……. कभी जो कह नहीं पाया।
बढ़े आगे सफर में जब मिले कितने सखा साथी।
हटाने को अंधेरे सब जले बनकर दिया बाती।
हुए कुछ गुम ॲंधेरों में, गगन में जा के कुछ चमके,
मेरी मेहनत से चमका जो वो किस्मत का सितारा है।(2)
……….कभी जो कह नहीं पाया।
चले जब हमसफर बनकर तुम्हारे साथ जीवन में।
खिलाएं फूल तुमने अनगिनत मानस के गुलशन में।
बसंती रुत में कोयल अब सुनती गीत प्यारा है।(3)
………कभी जो कह नहीं पाया।
सुनो डूबेगा सूरज रात होगी तम से मत डरना।
क्या खोया है क्या पाया है इसी का आंकलन करना।
रहेगा साथ वो ही जो कमाया प्यार से तुमने,
नहीं तो डूबती कश्ती कहां मिलता किनारा है।(4)
………कभी जो कह नहीं पाया।
…….✍️ सत्य कुमार प्रेमी